Friday, 5 October 2018

" सिगरेट संग "

" सिगरेट संग "
में अपनी तन्हाई सिगरेट के साथ बाँट ही रहा था।
कि, किसीने वो सुकून भी छीन लिया
वो बोला क्या रखा है इस नशे में
कर नशा हुनर का, तेरी सिगरेट से ज़्यादा नशीला है।

मेने मुस्कुराते हुए कहा यह मेरी सिगरेट है।
ये परियों की तरह धोखा नहीं देती।
फिर क्या था, बात ही दिया कि क्या अंतर
हेबेस सिगरेट ओर उस परियों में।

"मतलब परियों से अच्छी तो मेरी सिगरेट है।
जो मेरे होंठ से अपनी ज़िंदगी शुरू करती है।
और मेरे कदमों के निचे अपना दम तोड़ देती है।"

ये परीयों का koi ईमान, धर्म नहीं होता
इन्हें ख़्वाब में रहेना अच्छा लगता है।
ये हक़ीक़तों में कहा जिती है।
ये वो है जिन्हें सिर्फ नीले बादलों से
ही प्यार हो सकता है।
क्यूंकि वो उस काली राते पसंद नहीं
पर को उसे बताये, की काली रात ही तो
सच्ची है बाकी सब धोखा है।

वो हर पैमाने पर तुझे तोलेगी, रूआब, रूतबा,
शान-य-शौकत होना ज़रूरी है ओर एक बात
कहना भूल गया की खूबसूरत चहेरा होना ज़रूरी है।

ज़नाब इसे तो अच्छी मेरी सिगरेट है।
जो न मेरा धर्म पुछती है ना मेरा कर्म
ओर ना ही मेरी जाती और रूप
बस एक ही बात क्या आप तन्हा है
तो मुझे दोस्त बनालें आपकी तन्हाई दूर हो जायेगी।

सही तो बात है, जब भी इन परियोंसे
मिलोगे तो अपने आपसे अकेला पाएंगे।
जबभी सिगरेट से मिलोगे तो भरी
महफ़िलो तो कही दोस्तों के साथ तो
किसी के गम के साथ बटते हुये देखोगे।

ज़नाब ये मेरी सिगरेट है जो मेरे साथ जल जल
कर मर रही है।
ये उन परीयों की तरह नहीं जो जलाकर हमें चली जाती है।

"इस लिए "माही" कह गये करियो
संग सिगरेट जल्दी जइयो स्वर्ग
करियो संग "परी" तो ज़िन्दगी बनजावे नर्क"

1 comment:

2.1

  2.1 it's not only words wps office from Goswami Mahirpari