Friday, 11 January 2019

हुसने शहार

हुसने  शहार

 में वेसे शहार आया जह हूसन का सौदा होता है।
पहले बात दील से दिल की हुई थी।
न जाने क्यूं ये दिल से हुसन का है गाय।
कहा तो यह था कि इस शहार में
मोहोबत होती हैं पर न जाने क्यूं अब जिस्मबजी हो रही है।
में पागल अंधिरे नगरी में उजाला ठूड रहा था।
हुसन के बाजार में ,में दिल का सौदा कर रहा था।
ये हुसन - ए - सहर में सब कुछ बिकता है जनाब,
यहां जिस्म बिकता है , ईमान बिकता है।
मुजे लगा दिल से दिल का सौदा होगा।
पर येतो हुसन से हुसन का घाटेका का सौदा हो गया।
जहा मोहोबात ढूड रहा था, यहां हुस्न  ठूडा जा रहा था।
आख़िर कार मेंभी दिल से दिल का सौदा कर आया।
पर यह सौदा किसी शिस्ट समाज या खानदानी जगह पे नही हुआ,
पर यह सौदा मेरे दिल और उन अंधेरी  रातो  की गली यो में ,
बज रहे धुधरू ओ के साथ हुआ।
हा मूजे पता है ये शिस्ट समाज का कोय सौदा नथा पर यसी अंधरी सहर में ,
लाल मधियं रोशनी में मुजे दिल से दिल का सौदा मिला।
सायद ये किसी शिस्ट समाज के लिऐ ये गेर - जमानती था ,या वाजिब सौद न था ,
पर मेरे लिए सचा सौदा था।
इसी लिए माही के गए करे दिल से दिल का सौदा, तो मुनाफा होई।
जो करे सौदा जिसम का तो ठाई सब्दो का क्या मोल र जयी।

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